शादी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और पवित्र समारोह है, जिसमें विभिन्न रीति-रिवाज और परंपराएं निभाई जाती हैं। इनमें से एक अनोखी परंपरा यह है कि मां अपने बेटे के फेरे नहीं देखती। यह परंपरा कई स्थानों पर प्रचलित है और इसके पीछे कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण हैं।
मुगलों का प्रभाव
इस परंपरा की जड़ें मुगल काल में पाई जाती हैं। कहा जाता है कि पहले महिलाएं अपने बेटों की शादी में शामिल होती थीं और फेरे भी देखती थीं। लेकिन जब मुगलों का शासन भारत में आया, तब बारात में महिलाओं के जाने से संबंधित कई समस्याएं उत्पन्न हुईं। महिलाएं जब बारात में जाती थीं, तो अक्सर घर में चोरी या डकैती हो जाती थी। इस कारण से, घर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, महिलाओं ने शादी के समारोहों में शामिल होना बंद कर दिया और घर पर ही रहकर परिवार की देखभाल करने का निर्णय लिया.
गृह प्रवेश की रस्म
एक अन्य कारण यह भी है कि विवाह के बाद दुल्हन का गृह प्रवेश एक महत्वपूर्ण रस्म होती है। इस रस्म के दौरान मां को यह सुनिश्चित करना होता है कि सब कुछ सही तरीके से हो रहा है। इसलिए, मां को बेटे की शादी में शामिल नहीं होने दिया जाता ताकि वह गृह प्रवेश की तैयारी कर सके. इस रस्म में दुल्हन के स्वागत के लिए विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसमें मां की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
क्षेत्रीय विविधता
भारत के विभिन्न राज्यों में इस परंपरा का पालन किया जाता है, विशेषकर उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान में। हालांकि, समय के साथ इस परंपरा में बदलाव भी आया है। आजकल कई शिक्षित परिवारों में मां अपने बेटे की शादी में शामिल होती हैं और फेरे भी देखती हैं। यह बदलाव समाज की सोच और मान्यताओं में परिवर्तन को दर्शाता है.
सामाजिक दृष्टिकोण
इस परंपरा को लेकर कई सामाजिक दृष्टिकोण भी मौजूद हैं। कुछ लोग इसे पुरानी सोच का परिणाम मानते हैं, जबकि अन्य इसे एक सांस्कृतिक पहचान के रूप में देखते हैं। आजकल युवा पीढ़ी इन परंपराओं को चुनौती दे रही है और अपनी मां को शादी समारोहों में शामिल करने का समर्थन कर रही है। यह बदलाव न केवल पारिवारिक संरचना को मजबूत करता है बल्कि माताओं की भूमिका को भी सम्मानित करता है.
इस प्रकार, मां द्वारा बेटे के फेरे न देखने की परंपरा एक गहरी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रखती है। हालांकि समय के साथ इसमें बदलाव आ रहा है, लेकिन यह परंपरा आज भी कई क्षेत्रों में प्रचलित है। यह दर्शाता है कि कैसे समाज की सोच समय के साथ विकसित होती रहती है और पारिवारिक संबंधों में नई दिशा लेती है।