शराब सेहत के लिए हानिकारक होने के बावजूद, सरकारें इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित करने में संकोच करती हैं। इसके कई कारण हैं:
राजस्व का अहम स्रोत
शराब पर लगने वाले कर और शुल्क सरकारों के लिए महत्वपूर्ण राजस्व का स्रोत हैं। उदाहरण के लिए, बिहार सरकार ने 2016-17 में शराब पर लगने वाले कर से 3,141 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया था। इस राजस्व का उपयोग विकास कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं के लिए किया जाता है। शराबबंदी से सरकारों को इस राजस्व का नुकसान होगा।
तस्करी और अवैध शराब व्यापार का खतरा
शराबबंदी से अवैध शराब तस्करी और अवैध शराब व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है। इससे गुणवत्ता नियंत्रण खत्म हो जाता है और जहरीली शराब पीने से लोगों की जान जा सकती है। उदाहरण के लिए, बिहार में शराबबंदी के बाद कई बार जहरीली शराब त्रासदियां हुई हैं।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध
कई लोग शराब पीना अपने जीवन का हिस्सा मानते हैं। उनके अनुसार, शराबबंदी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है। वे इसे अपने अधिकारों का उल्लंघन मानते हैं।
कानून प्रवर्तन में कठिनाई
शराबबंदी कानून लागू करना कठिन होता है। पुलिस और प्रशासन पर अवैध शराब व्यापार पर लगाम लगाने का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। कई बार पुलिस और नेताओं पर भी इस व्यापार में संलिप्तता के आरोप लगते हैं।
समाज के गरीब वर्गों पर असमान प्रभाव
शराबबंदी समाज के गरीब वर्गों को असमान रूप से प्रभावित करती है। उच्च वर्ग अभी भी महंगी और सुरक्षित शराब खरीदने में सक्षम होते हैं। जबकि गरीब लोग सस्ती और गुणवत्ता रहित शराब पीने को मजबूर होते हैं।
इन कारणों से, सरकारें शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बजाय इसे नियंत्रित करने और कर वसूलने का रास्ता अपनाती हैं। हालांकि, शराब के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए शिक्षा और परामर्श अभियानों पर ध्यान दिया जा सकता है।