दाह संस्कार के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों का जलना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन इसमें एक विशेष अंग ऐसा है जो आग में नहीं जलता। यह अंग हैं दांत। दांतों का न जलने का कारण उनके निर्माण में मौजूद कैल्शियम फॉस्फेट है, जो उन्हें उच्च तापमान पर भी सुरक्षित रखता है।
दाह संस्कार की प्रक्रिया
दाह संस्कार के दौरान, जब शरीर को आग लगाई जाती है, तो सबसे पहले शरीर के नरम ऊतकों में जलन शुरू होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 670 से 810 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर शरीर लगभग 10 मिनट में पिघलने लगता है। 20 मिनट बाद, ललाट की हड्डी नरम ऊतकों से अलग हो जाती है और कपाल की पतली दीवार में दरारें आनी लगती हैं।
समय के अनुसार शरीर के अंगों का जलना
– 10 मिनट: शरीर पिघलने लगता है।
– 20 मिनट: ललाट की हड्डी नरम टिश्यू से मुक्त हो जाती है।
– 30 मिनट: त्वचा जल जाती है और आंतरिक अंग सिकुड़ने लगते हैं।
– 40 मिनट: आंतरिक अंग गंभीर रूप से सिकुड़ जाते हैं।
– 1-1.5 घंटे: हाथ-पैर नष्ट हो जाते हैं और केवल धड़ बचता है।
– 2-3 घंटे: मानव शरीर पूरी तरह से जलकर राख में बदल जाता है।
दांतों का विशेष महत्व
दांतों का न जलना इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण पहलू है। दांत कैल्शियम फॉस्फेट से बने होते हैं, जो उन्हें उच्च तापमान पर भी सुरक्षित रखता है। आग में दांत के नरम ऊतकों का जलना संभव है, लेकिन उनका सबसे कठोर ऊतक यानी तामचीनी बच जाता है। यही कारण है कि दाह संस्कार के बाद दांत अक्सर सुरक्षित रहते हैं, जबकि अन्य अंग राख में बदल जाते हैं।
कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नाखून भी आग में नहीं जलते, लेकिन इस बात की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है।
दाह संस्कार का सांस्कृतिक महत्व
हिंदू धर्म में दाह संस्कार का विशेष महत्व होता है। इसे आत्मा की शुद्धि और पंचतत्व में विलीन होने की प्रक्रिया माना जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से आत्मा को नए जीवन की ओर अग्रसर किया जाता है।
इस प्रकार, दाह संस्कार के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों का जलना एक प्राकृतिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें केवल दांत ही ऐसे अंग होते हैं जो आग में नहीं जलते। यह जानकारी न केवल सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानव शरीर की संरचना और उसके विभिन्न अंगों की विशेषताओं को भी दर्शाती है।