वाराणसी के मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियों को हटाने का मामला हाल ही में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह कदम कई धार्मिक संगठनों द्वारा उठाया गया है, जिसमें सनातन रक्षक दल और केंद्रीय ब्राह्मण महासभा शामिल हैं। आइए, इस विवाद की जड़ और इसके पीछे के कारणों को समझते हैं।
साईं बाबा की मूर्तियों को हटाने का कारण
धार्मिक विवाद
साईं बाबा की पूजा को लेकर विवाद कोई नया नहीं है। पहले भी कई धार्मिक नेताओं ने साईं बाबा की पूजा पर सवाल उठाए हैं। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने पहले भी कहा था कि साईं बाबा का असली नाम चांद मियां था और वे मुस्लिम थे, इसलिए उन्हें देवता के रूप में नहीं पूजा जाना चाहिए। उन्होंने साईं बाबा की पूजा को सनातन धर्म के खिलाफ बताया है।
सनातन रक्षक दल का अभियान
सनातन रक्षक दल ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा है कि हिंदू धर्म में केवल पंच देवों की मूर्तियों की पूजा की जानी चाहिए। उनका तर्क है कि किसी भी मृत व्यक्ति की मूर्ति का मंदिर में होना वर्जित है। इसलिए, उन्होंने वाराणसी के विभिन्न मंदिरों से साईं की मूर्तियों को हटाने का अभियान शुरू किया है।
मंदिर प्रबंधन की सहमति
मंदिर प्रबंधन ने इन संगठनों के साथ मिलकर निर्णय लिया कि साईं बाबा की मूर्तियों को सम्मानपूर्वक हटाया जाएगा। बड़ा गणेश मंदिर और पुरुषोत्तम मंदिर जैसे प्रमुख मंदिरों से ये मूर्तियाँ हटाई गई हैं।
विवाद का विस्तार
ब्राह्मण महासभा की भूमिका
केंद्रीय ब्राह्मण महासभा ने भी इस मामले में सक्रिय भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि यदि लोग साईं बाबा की पूजा करना चाहते हैं, तो उन्हें अलग से मंदिर बनाना चाहिए। इस संगठन के सदस्यों ने यह भी कहा कि साईं बाबा की मूर्ति स्थापित करने से हिंदू धर्म कमजोर होगा।
भक्तों की भावनाएँ
इस पूरे मामले में भक्तों की भावनाएँ भी महत्वपूर्ण हैं। कुछ भक्त इस बदलाव का समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य इसे धार्मिक सहिष्णुता के खिलाफ मानते हैं। वाराणसी में कई भक्तों ने इस कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की है कि क्या यह धार्मिक विविधता के खिलाफ है।
वाराणसी में साईं बाबा की मूर्तियों को हटाने का यह विवाद धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह न केवल हिंदू धर्म के भीतर आस्था और विश्वास के मुद्दों को उजागर करता है, बल्कि विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच संवाद और सहिष्णुता की आवश्यकता को भी दर्शाता है।
इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि साईं बाबा की मूर्तियों का हटना एक व्यापक धार्मिक विमर्श का हिस्सा है, जो आगे चलकर भारतीय समाज में विभिन्न आस्थाओं और उनके स्थान को लेकर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाएगा।