ईरान और इजरायल के बीच संबंधों का इतिहास एक समय में मित्रता से शुरू होकर दुश्मनी की ओर बढ़ा है। इस लेख में हम इस परिवर्तन के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करेंगे।
प्रारंभिक मित्रता
ईरान और इजरायल के बीच संबंध 1950 के दशक में मजबूत हुए। उस समय ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने इजरायल को एक सहयोगी के रूप में देखा। दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ आर्थिक, सैन्य और खुफिया सहयोग बढ़ाया। ईरान ने 1950 में इजरायल को आधिकारिक मान्यता दी थी, और दोनों देशों के बीच संबंधों में घनिष्ठता थी, जो मुख्यतः अमेरिका के समर्थन पर आधारित थी।
इस्लामिक क्रांति का प्रभाव
1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति ने सब कुछ बदल दिया। अयातुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में ईरान ने एक इस्लामी गणराज्य की स्थापना की, जिसने पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और इजरायल के साथ अपने संबंधों को समाप्त कर दिया। ईरान ने इजरायल को “छोटा शैतान” कहना शुरू किया और इसके अस्तित्व को नकारने की नीति अपनाई।
दुश्मनी की शुरुआत
इस क्रांति के बाद, ईरान ने इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीनी और अन्य विरोधी आंदोलनों का समर्थन करना शुरू किया। इसके परिणामस्वरूप, दोनों देशों के बीच संबंध तेजी से बिगड़ने लगे। 1991 में गल्फ वॉर के बाद, ईरान और इजरायल के बीच खुली दुश्मनी का युग शुरू हुआ। सोवियत संघ के पतन और अमेरिका की एकमात्र महाशक्ति बनने से क्षेत्रीय राजनीति और भी अधिक पोलराइज्ड हो गई।
मौजूदा स्थिति
हाल के वर्षों में, ईरान ने इजरायल पर कई मिसाइल हमले किए हैं, जिससे तनाव और बढ़ गया है। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर जुबानी हमले किए हैं और प्रॉक्सी वॉर की शुरुआत की है। ईरान ने अपने पड़ोस में कई प्रॉक्सी तैयार किए हैं, जबकि इजरायल ने अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया है।
ईरान और इजरायल की कहानी एक समय की मित्रता से शुरू होकर अब दुश्मनी में बदल गई है। यह परिवर्तन मुख्य रूप से राजनीतिक कारणों, धार्मिक विचारधाराओं और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव के कारण हुआ है। वर्तमान स्थिति यह दर्शाती है कि दोनों देश एक-दूसरे को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं, जिससे मध्य पूर्व में शांति की संभावनाएँ कम होती जा रही हैं।