नीम करोली बाबा, जिनका असली नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा था, भारतीय संत और भक्तों के बीच अत्यधिक revered हैं। 11 सितंबर 1973 को, अनंत चतुर्दशी के दिन, उन्होंने वृंदावन में अपने शरीर का त्याग किया। इस दिन की घटनाएँ और उनकी समाधि का महत्व आज भी भक्तों के दिलों में जीवित है।
नीम करोली बाबा का जीवन
नीम करोली बाबा का जन्म लगभग 1900 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गाँव में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय हनुमान जी की भक्ति में बिताया और उन्हें हनुमान जी का अवतार माना जाता है। उनके अनुयायी उन्हें “महाराजजी” के नाम से जानते हैं। बाबा ने कई आश्रम स्थापित किए और उनके अनुयायी देश-विदेश में फैले हुए हैं।
महासमाधि का दिन
1973 में, जब बाबा की मृत्यु हुई, तब वह वृंदावन स्थित अपने आश्रम में थे। उस दिन अनंत चतुर्दशी का पर्व था, जो हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन, उन्होंने अपने भक्तों से कहा कि अब उनका जाने का समय आ गया है। उन्होंने तुलसी और गंगाजल ग्रहण किया और रात करीब 1:15 बजे उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया। उनकी मृत्यु का कारण मधुमेह कोमा बताया गया है.
उस दिन की घटनाएँ
बाबा की मृत्यु के समय उनके भक्तों की एक बड़ी संख्या उनके आस-पास थी। जब उनकी तबीयत बिगड़ी, तो उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगाने की कोशिश की, लेकिन बाबा ने इसे लगाने से मना कर दिया। उन्होंने अपने भक्तों से कहा कि उनका समय समाप्त हो चुका है और वे अब इस शरीर को छोड़ने वाले हैं.
उनकी मृत्यु के समय भक्तों ने देखा कि बाबा ने अपनी अंतिम सांस लेते समय एक अद्भुत शांति का अनुभव किया। यह उनके अनुयायियों के लिए एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव था, जिसने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि बाबा हमेशा उनके साथ रहेंगे।
समाधि स्थल
बाबा नीम करोली की समाधि वृंदावन में स्थित है, जहां आज भी हजारों श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए आते हैं। उनकी पुण्यतिथि हर साल 11 सितंबर को मनाई जाती है, और इस दिन विशेष पूजा-अर्चना होती है। भक्तों का मानना है कि जो भी व्यक्ति यहां आता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
समाधि के बाद की घटनाएँ
बाबा की महासमाधि के बाद उनकी शिष्या श्री सिद्धि मां ने उनकी तपस्या करने वाली गुफा की खोज की। 30 साल बाद जब वह गुफा मिली, तो वहां से कई महत्वपूर्ण वस्तुएं प्राप्त हुईं, जो बाबा के जीवन से जुड़ी थीं[1]. यह गुफा आज भी भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थल बन गई है।
नीम करोली बाबा का जीवन और उनकी महासमाधि एक प्रेरणा स्रोत हैं। उनके अनुयायी आज भी उनकी शिक्षाओं पर चलते हैं और उन्हें अपने जीवन में अपनाते हैं। उनकी भक्ति और साधना की कहानियाँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और उनके प्रति श्रद्धा को बढ़ाती हैं।