अन्नू कपूर ने हाल ही में शाहरुख खान की प्रसिद्ध फिल्म ‘चक दे! इंडिया’ पर विवादास्पद टिप्पणी की है, जिसने एक नई बहस को जन्म दिया है। उन्होंने कहा कि फिल्म में मुसलमानों को अच्छे किरदार के रूप में दिखाया गया है, जबकि हिंदू पंडित का मजाक उड़ाया गया है। यह बयान अन्नू कपूर के बेबाक अंदाज के लिए जाना जाता है और उन्होंने इसे एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में व्यक्त किया।
अन्नू कपूर का बयान
अन्नू कपूर ने कहा, “चक दे! इंडिया” का मुख्य किरदार मशहूर कोच मीर रंजन नेगी पर आधारित है, लेकिन फिल्म निर्माताओं ने जानबूझकर इस किरदार को मुस्लिम दिखाया। उन्होंने आगे कहा कि भारत में ऐसा होता है कि मुसलमानों को अच्छे किरदारों में दिखाने की कोशिश की जाती है, जबकि पंडित का मजाक उड़ाया जाता है। कपूर ने इसे गंगा-जमुनी तहजीब के विचार से जोड़ते हुए कहा कि यह एक पुरानी बात है, जहां इस पर लेबल लगाने के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता के विचारों का इस्तेमाल किया जाता है।
फिल्म ‘चक दे! इंडिया‘ का सार
2007 में रिलीज हुई ‘चक दे! इंडिया’ एक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है, जिसमें शाहरुख खान ने कबीर खान का किरदार निभाया है। कबीर खान एक पूर्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी हैं, जो पाकिस्तान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण मैच हारने के बाद अपने देश के साथ विश्वासघात करने के आरोप में फंस जाते हैं। अपनी प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के लिए, वह भारतीय महिला हॉकी टीम का कोच बनते हैं, जो संघर्ष कर रही होती है। फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे कबीर खान अपनी टीम को प्रशिक्षित करके उन्हें चैंपियन बनाते हैं।
अन्नू कपूर का फिल्मी सफर
अन्नू कपूर ने अपने करियर में कई सफल फिल्मों में काम किया है, जैसे ‘मंडी’, ‘उत्सव’, ‘मिस्टर इंडिया’, और ‘विकी डोनर’। उन्हें अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं, जिसमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार शामिल है। उनके बेबाक बयानों की वजह से वह अक्सर सुर्खियों में रहते हैं।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
अन्नू कपूर के इस बयान ने सोशल मीडिया पर काफी हलचल मचा दी है। कुछ यूजर्स ने उनके विचारों का समर्थन किया, जबकि अन्य ने इस तरह की टिप्पणियों को विवादास्पद बताया। इस विषय पर बहस छिड़ गई है कि क्या वास्तव में बॉलीवुड फिल्मों में धार्मिक पहचान को लेकर पूर्वाग्रह मौजूद हैं या नहीं।
अन्नू कपूर का यह बयान न केवल ‘चक दे! इंडिया’ बल्कि भारतीय सिनेमा और समाज में धार्मिक पहचान और प्रतिनिधित्व की जटिलताओं पर भी सवाल उठाता है। यह बहस इस बात की ओर इशारा करती है कि किस प्रकार फिल्मों में पात्रों का निर्माण और उनके चित्रण सामाजिक संदर्भों से प्रभावित होते हैं।
अन्नू कपूर का यह बयान निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है। यह दर्शाता है कि सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने का माध्यम भी हो सकता है। ऐसे में filmmakers को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होना चाहिए और उन्हें सामाजिक मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।