अहमदाबाद के पुराने शहर की सादू माता नी पोल में एक अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है, जिसमें पुरुष महिलाएं के कपड़े पहनकर गरबा करते हैं। यह परंपरा 200 साल पुरानी है और इसे हर साल नवरात्रि के आठवें दिन मनाया जाता है। इस लेख में हम इस परंपरा के पीछे की कहानी, इसके सांस्कृतिक महत्व और इसके सामाजिक पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
परंपरा का इतिहास
इस परंपरा की शुरुआत एक दुखद घटना के साथ हुई थी। 18वीं शताब्दी में, जब भारत मुग़ल साम्राज्य के अधीन था, एक खूबसूरत महिला, सादु बेन, को एक मुग़ल शासक ने अपने हरम में शामिल करने की कोशिश की। जब बारोट समुदाय के पुरुषों ने उसकी रक्षा नहीं की, तो सादु बेन ने उन पर श्राप दिया कि उनके वंशज कायर बनेंगे। इस श्राप को समाप्त करने के लिए, हर साल नवरात्रि के दौरान पुरुष महिलाएं के कपड़े पहनकर गरबा करते हैं.
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य केवल श्राप को समाप्त करना नहीं है, बल्कि यह समुदाय की एकता और श्रद्धा का प्रतीक भी है। जब पुरुष महिलाएं के कपड़े पहनते हैं, तो यह एक प्रकार का विनम्रता और सम्मान का संकेत होता है। यह न केवल अपने पूर्वजों की गलतियों का प्रायश्चित करने का एक तरीका है, बल्कि यह देवी सादु माता के प्रति आभार व्यक्त करने का भी अवसर है.
गरबा का उत्सव
सादू माता नी पोल में गरबा का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन, सैकड़ों लोग इस पोल में इकट्ठा होते हैं, जहां पुरुष रंग-बिरंगे साड़ी पहनकर गरबा करते हैं। यह दृश्य न केवल अद्भुत होता है बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का भी एक माध्यम है। उत्सव के दौरान, लोग देवी से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं और जब उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं, तो वे इस परंपरा में भाग लेते हैं.
आधुनिक संदर्भ
हालांकि इस परंपरा को कुछ लोग लिंग भेदभाव से जोड़ते हैं, लेकिन बारोट समुदाय इसे श्रद्धा और विनम्रता का प्रतीक मानता है। कई पुरुष जो इस परंपरा में भाग लेते हैं, उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए हैं कि कैसे उन्होंने व्यवसाय में सफलता या स्वास्थ्य की कामना की थी और देवी ने उनकी इच्छाओं को पूरा किया.
अहमदाबाद की सादू माता नी पोल में मर्दों द्वारा महिलाओं वाले कपड़े पहनकर गरबा करने की परंपरा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर और एकता का प्रतीक भी है। यह परंपरा हमें याद दिलाती है कि कैसे इतिहास और संस्कृति मिलकर हमारे वर्तमान को आकार देते हैं।