रेलवे ट्रैक का लोहा चोरी क्यों नहीं होता, यह एक दिलचस्प विषय है। भारतीय रेलवे की पटरियाँ खुले में रखी होती हैं, फिर भी इनका लोहा चोरी नहीं होता। इसके पीछे कई कारण हैं, जो न केवल तकनीकी हैं बल्कि सुरक्षा से भी जुड़े हुए हैं।
भारी वजन और कठिनाई
रेलवे ट्रैक की पटरियाँ बहुत भारी होती हैं, आमतौर पर 40 से 60 किलोग्राम प्रति मीटर के बीच। इस भारी वजन के कारण, इन्हें उठाना और ले जाना किसी के लिए भी आसान नहीं होता। अगर दो या तीन लोग भी मिलकर कोशिश करें, तो भी उन्हें जल्दी से भागना मुश्किल हो जाता है।
विशेष मिश्र धातु
रेल की पटरियाँ शुद्ध लोहे की नहीं होतीं, बल्कि ये एक विशेष प्रकार के स्टील से बनी होती हैं, जो अत्यधिक कठोर और टिकाऊ होता है। यह विशेष मिश्र धातु इसे काटने या तोड़ने में मुश्किल बनाता है। इसलिए, चोरों के लिए इसे चुराना एक कठिन कार्य होता है।
सुरक्षा उपाय
भारतीय रेलवे ने सुरक्षा के लिए कई उपाय किए हैं। रेलवे ट्रैक को टाई और स्लीपरों से सुरक्षित रूप से बांधा जाता है। इसके अलावा, ट्रैक के नीचे गिट्टी या सबग्रेड का उपयोग किया जाता है, जिससे इसे खोलना या हटाना आसान नहीं होता।
निगरानी और गश्त
रेलवे ट्रैक की निगरानी के लिए विशेष टीमें तैनात की जाती हैं जो नियमित रूप से गश्त करती हैं। ये टीमें चोरों को पकड़ने में मदद करती हैं और चोरी की घटनाओं को रोकती हैं।
कबाड़ी का डर
एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कोई कबाड़ी इस लोहे को खरीदने में हिचकिचाते हैं क्योंकि उस पर भारतीय रेलवे की सील लगी होती है। उन्हें डर होता है कि कहीं न कहीं यह लोहे का सामान पकड़ा जाएगा और वे कानून के शिकंजे में फंस जाएंगे।
इन सभी कारणों के चलते रेलवे ट्रैक का लोहा चोरी नहीं होता। यह न केवल भारतीय रेलवे की सुरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा है, बल्कि यह देश की संपत्ति का भी एक महत्वपूर्ण घटक है। रेलवे ट्रैक की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदम न केवल तकनीकी रूप से मजबूत हैं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का भी परिचायक हैं।