द्रौपदी, महाभारत की एक प्रमुख पात्र हैं, जिनका विवाह पांच पांडवों से हुआ था। यह विवाह केवल एक साधारण घटना नहीं थी, बल्कि इसके पीछे एक गहरी पौराणिक कथा छिपी हुई है। द्रौपदी के पांच पतियों के पीछे का कारण एक वरदान है जो उन्हें पिछले जन्म में मिला था। इस लेख में हम इस कथा का विस्तार से वर्णन करेंगे।
द्रौपदी का पूर्वजन्म
द्रौपदी का जन्म पांचाल राज्य के राजा द्रुपद की पुत्री के रूप में हुआ था। किंवदंतियों के अनुसार, द्रौपदी का जन्म यज्ञ अग्नि से हुआ था, इसलिए उसे यज्ञसेनी भी कहा जाता है। लेकिन द्रौपदी का जीवन केवल इस जन्म तक सीमित नहीं था। उसके पिछले जन्म में वह एक ऋषि कन्या थी, जिसका नाम इंद्रसेना था। इंद्रसेना ने अपने पति मुद्गल ऋषि की मृत्यु के बाद पति पाने की कामना की थी।
भगवान शिव की तपस्या
इंद्रसेना ने भगवान शिव की घोर तपस्या की ताकि वह एक सर्वगुण संपन्न पति प्राप्त कर सके। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वर मांगने के लिए कहा। इंद्रसेना ने हड़बड़ी में पांच बार कहा कि वह सर्वगुण संपन्न पति चाहती है। भगवान शिव ने उसके इस अनुरोध को स्वीकार किया और कहा कि अगले जन्म में उसे पांच पति प्राप्त होंगे।
द्रौपदी का स्वयंवर
जब द्रौपदी का स्वयंवर आयोजित हुआ, तो पांडव भी ब्राह्मण का भेष धारण कर वहां पहुंचे। अर्जुन ने स्वयंवर जीतकर द्रौपदी को अपना पति मान लिया। जब अर्जुन अपने भाइयों के साथ घर लौटे और मां कुंती से कहा कि उन्होंने क्या लाया है, तो कुंती ने अनजाने में कह दिया कि वे जो भी लाए हैं, उसे आपस में बांट लें। इस प्रकार, द्रौपदी को सभी पांच पांडवों की पत्नी बनना पड़ा।
द्रौपदी का संघर्ष और भूमिका
द्रौपदी केवल एक पत्नी नहीं थीं, बल्कि उन्होंने महाभारत के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अपमान के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ था। वह एक साहसी और बुद्धिमान महिला थीं, जिन्होंने अपने पतियों के साथ साथ अपनी गरिमा और सम्मान को बनाए रखा।
द्रौपदी का विवाह पांच पांडवों से केवल एक कथा नहीं है, बल्कि यह भारतीय पौराणिक कथाओं में नारी के संघर्ष और शक्ति का प्रतीक है। उनके पिछले जन्म का वरदान ही उनके वर्तमान जीवन को आकार देता है और यह दर्शाता है कि कैसे एक व्यक्ति की इच्छाएं और कर्म उसके भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।