रावण, जो कि रामायण का एक प्रमुख पात्र है, अपनी विद्या, शक्ति और ऐश्वर्य के लिए जाना जाता था। लेकिन उसकी मृत्यु का कारण माता सीता थीं, और इसके पीछे एक गहरा रहस्य छिपा हुआ है। यह रहस्य उस श्राप से जुड़ा है जो रावण को देवी वेदवती द्वारा दिया गया था। आइए इस श्राप और उसके प्रभाव को विस्तार से समझते हैं।
रावण का श्राप: एक पृष्ठभूमि
वेदवती का तप
वेदवती, जो देवी लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न हुई थीं, भगवान नारायण की परम भक्त थीं। उन्होंने भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। उनकी तपस्या इतनी गहन थी कि भगवान विष्णु स्वयं उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अगले जन्म में उनकी पत्नी बनने का आश्वासन दिया।
रावण का विवाह प्रस्ताव
जब वेदवती गंधमादन पर्वत पर तप कर रही थीं, तब रावण ने उनकी सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन वेदवती ने रावण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इससे क्रोधित होकर रावण ने उन्हें अपमानित करने की कोशिश की, लेकिन वेदवती ने अपने तपोबल से उसे जड़ बना दिया और पर्वत से कूदकर प्राण त्याग दिए।
श्राप का प्रभाव
मौत से पहले, वेदवती ने रावण को श्राप दिया कि वह एक दिन उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इस श्राप के अनुसार, अगले जन्म में वेदवती माता सीता के रूप में प्रकट हुईं। जब रावण ने सीता का अपहरण किया, तब वह इस श्राप के प्रभाव में था। सीता के रूप में वेदवती ने रावण को याद दिलाया कि उसकी कुदृष्टि पहले भी उन पर थी और यही कारण था कि वह अंततः रावण का अंत करेंगी।
रावण का डर: सीता को छूने से बचना
रंभा का श्राप
एक अन्य कथा के अनुसार, रावण ने रंभा नामक अप्सरा के साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी, जिसके कारण रंभा ने उसे श्राप दिया था कि वह किसी भी पराई स्त्री को उसकी इच्छा के बिना छू नहीं सकेगा। यदि उसने ऐसा किया तो वह भस्म हो जाएगा। यही कारण था कि जब उसने माता सीता का अपहरण किया, तब भी वह उन्हें छू नहीं पाया।
सीता की अग्नि परीक्षा
जब राम ने सीता को अग्नि में समर्पित किया, तब अग्नि से वेदवती प्रकट हुईं और यह स्पष्ट किया कि वह रावण के श्राप का परिणाम हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि रावण की मृत्यु केवल सीता द्वारा दिए गए श्राप का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह एक श्रृंखला थी जिसमें कई धार्मिक और आध्यात्मिक तत्व शामिल थे.
इस प्रकार, रावण की मृत्यु और माता सीता को छूने में असमर्थता दोनों ही देवी वेदवती के श्राप से संबंधित हैं। यह कथा हमें यह सिखाती है कि कर्मों का फल अवश्य मिलता है और किसी भी व्यक्ति की शक्ति या ऐश्वर्य उसके कर्मों से निर्धारित होते हैं।