मसूर की दाल को मांस मानने का कारण भारतीय संस्कृति, धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिष से जुड़ा हुआ है। यह धारणा मुख्य रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है, जहां ब्राह्मण समुदाय मसूर की दाल का सेवन नहीं करता। आइए इस विषय को विस्तार से समझते हैं।
मसूर की दाल का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
मसूर की दाल (Lentil) का उत्पादन मुख्य रूप से हिंदूकुश पर्वत के क्षेत्र में होता है, और इसे प्राचीन काल से विभिन्न संस्कृतियों में खाया जाता रहा है। भारत में, जब अफगान और मुगल आए, तो उन्होंने अपने साथ मसूर की दाल भी लाई। इस प्रकार, यह दाल मांसाहारी व्यंजनों का एक हिस्सा बन गई, जिससे शाकाहारी लोगों ने इससे परहेज करना शुरू कर दिया।
ज्योतिषीय मान्यता
भारतीय ज्योतिष में खाद्य पदार्थों को ग्रहों से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि मसूर की दाल मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है, जो क्रोध और हिंसा का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, इसे खाने से मन में नकारात्मक भावनाओं का संचार हो सकता है। इस धारणा के कारण शाकाहारी लोग इसे अपने आहार से बाहर रखते हैं[।
ग्रहों का प्रभाव
– मूंग की दाल: बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है।
– चना: बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है।
–उड़द: शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है।
– मसूर: मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है, जिससे इसके सेवन को हानिकारक माना जाता है।
इस प्रकार, धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं के कारण ब्राह्मण समुदाय मसूर की दाल को मांस के समान मानता है और इसे अपने आहार में शामिल नहीं करता।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से मसूर की दाल पूरी तरह से शाकाहारी होती है और इसमें प्रोटीन, फाइबर, और अन्य पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। यह मांस के विकल्प के रूप में उपयोगी हो सकती है। फिर भी, भारतीय संस्कृति में इसके प्रति जो पूर्वाग्रह हैं, वे इसे शाकाहारियों द्वारा अस्वीकार करने का कारण बनते हैं।
पितृ पक्ष और अन्य धार्मिक अनुष्ठान
पितृ पक्ष के दौरान भी मसूर की दाल का सेवन नहीं किया जाता। माना जाता है कि इसका सेवन करने से पितरों का क्रोध बढ़ता है। इस समय लोग सात्विक भोजन करते हैं और तामसिक खाद्य पदार्थों जैसे लहसुन-प्याज और मांसाहार से दूर रहते हैं।
इस प्रकार, ब्राह्मण समुदाय द्वारा मसूर की दाल को मांस मानने के पीछे ऐतिहासिक, धार्मिक और ज्योतिषीय कारण हैं। यह केवल एक खाद्य पदार्थ नहीं है, बल्कि इसके साथ कई सांस्कृतिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से यह एक पौष्टिक आहार हो सकती है, लेकिन भारतीय परंपरा में इसके प्रति जो दृष्टिकोण है, वह इसे शाकाहारी आहार से बाहर रखता है।